संपूर्ण समर्पण से ही आध्यात्मिक विकास की राह होगी आसान::स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य
नई दिल्ली/फरीदाबाद। हैला हिंद न्यूज
(ashoksharma@hellohind.in)

दिल्ली-फरीदाबाद के सूरजकुंड मार्ग स्थित श्रीरामानुज संप्रदाय की इंद्रप्रस्थ पीठ श्रीलक्ष्मीनारायण दिव्यधाम और श्रीसिद्धदाता आश्रम के संस्थापक बैकुंठवासी श्रीमद जगदगुरु रामानुजाचार्य स्वामी सुदर्शनाचार्य जी महाराज की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में गुरुवार को आश्रम में एक विशाल चिकित्सा जांच शिविर आयोजित किया गया। इसका शुभारंभ श्रीसिद्धदाता आश्रम के पीठाधीश्वर एवं श्रीरामानुज संप्रदाय की इंद्रप्रस्थ-हरियाणा पीठ के पीठाधीश्वर श्रीमद जगदगुरु रामानुजाचार्य स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य जी महाराज, फरीदाबाद एनआईटी के भाजपा विधायक सनातनी सतीश फागना, शहर की महापौर प्रवीन जोशी और जनहित सेवा ट्रस्ट के अध्यक्ष आचार्य स्वामी अनिरुद्धाचार्य जी ने किया। अतिथियों ने विभिन्न प्रमुख निजी अस्पतालो के प्रमुख चिकित्सकों और अपने स्वास्थ संबंधी परामर्श या इलाज के लिए पहुंचे लोगों से बातचीत की।
शिविर में करीब 867 लोगों के स्वास्थ्य की जांच की गई। इनमें से करीब 33 लोगों में जांच के दौरान मोतियाबिंद पाया गया। इनका चयन किया गया इनका निशुल्क ऑपरेशन किया जाएगा।शिविर में पार्क अस्पताल, भाटिया सेवक समाज चैरिटेबल अस्पताल, मानव रचना डेंटल कॉलेज और यूनिपैथ लैब डायग्नोस्टिक के साथ-साथ आश्रम के सेवाभावी चिकित्सकों ने भी सेवा की। युवराज स्वामी अनिरुद्धाचार्य ने सभी सेवा करने वाले चिकित्सकों एवं सहयोगियों को सम्मानित किया और भविष्य में भी सेवा करने के लिए प्रोत्साहित किया।
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संपूर्ण समर्पण से ही आध्यात्मिक विकास की राह होगी आसान
श्रीसिद्धदाता आश्रम के पीठाधीश्वर एवं श्रीरामानुज संप्रदाय की इंद्रप्रस्थ-हरियाणा पीठ के पीठाधीश्वर श्रीमद जगदगुरु रामानुजाचार्य स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य जी महाराज ने श्रद्धालुओं के बीच अपने प्रवचन में कहा कि संपूर्ण समर्पण से ही आध्यात्मिक विकास की राह आसान होगी। भाव में ही भाव है मेरा के गुरु के भाव समर्पण का अर्थ है, गुरु के प्रति पूर्णतः समर्पित होना, उनकी शिक्षाओं का पालन करना, और उनके मार्गदर्शन में अपनी जीवन यात्रा को आगे बढ़ाना। यह शिष्यत्व का एक महत्वपूर्ण पहलू है जो गुरु और शिष्य के बीच एक गहरा संबंध बनाता है।
गुरु के प्रति समर्पण का अर्थ सार्थक करने के लिए श्रद्धालुओं को अहंकार का त्याग करना चाहिए। गुरु के प्रति समर्पण का अर्थ है, अपने मन और हृदय को गुरु मंत्र में लगाना चाहिए। शिष्य को गुरु की शिक्षाओं को खुले मन से ग्रहण करना चाहिए और उनकी बातों पर आँख बंद करके विश्वास करना चाहिए। आश्रम के अनुशासन को बनाए रखना भी गुरु के प्रति समर्पण का भाव दिखाता है। गुरु पर पूर्ण विश्वास रखना। शिष्य को गुरु की शिक्षाओं पर विश्वास करना चाहिए और उनकी बातों पर आँख बंद करके विश्वास करना चाहिए। गुरु के प्रति समर्पण आध्यात्मिक विकास के लिए आवश्यक है। सदगुरु हमें जीवन का लक्ष्य प्राप्त करने में मदद करते हैं। गुरु के मार्गदर्शन में हम अपनी जीवन यात्रा को सही दिशा में आगे बढ़ा सकते हैं। गुरु के प्रति समर्पण हमें सफलता प्राप्त करने में मदद करता है। गुरु हमें सही मार्गदर्शन देते हैं जिससे हम अपनी जीवन यात्रा में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। सदगुरु वह नौका है जिसमें बैठकर हम वैतरणी पार कर सकते हैं साथ ही संसार के सभी संकटों से भी बच सकते हैं। स्वामी जी ने कहा कि संतो की कृपा के बगैर सत्संग और भगवान की कथा का आनंद नहीं मिलता।
स्वामी श्री पुरुषोत्तमाचार्य जी महाराज ने कहा कि जब जब आवश्यकता पड़ती है परमात्मा अवतार लेते है। वहीं विशिष्ट कार्यों को पूरा करने के लिए संत महात्मा भी धरती पर आते हैं लेकिन वह दिव्य आत्मा शरीर त्यागने के बाद भी कही नहीं जाती और अपने कार्यों को निरंतर आगे बढ़ाती हैं।
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मनोकामनाएं पूर्ण होने का सिद्ध स्थल
फरीदाबाद शहर की प्रथम नागिरक महापौर प्रवीण जोशी ने कहा कि उनका आश्रम और गुरु महाराज से जुड़ाव 30 साल पुराना है जब वह अपने ससुर स्वर्गीय रमेश जोशी(भाजपा के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष) के साथ यहां आया करती थी और अब फरीदाबाद आने के बाद उनका यहां निरंतर आना रहता है। यहां सब की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
फरीदाबाद एनआईटी से विधायक सतीश फ़ागना ने कहा कि वह और उनका पूरा परिवार आश्रम का सेवक है। वह यहां के दीक्षित शिष्य हैं। उनके जीवन में जो कुछ भी पाया है वह श्री गुरु महाराज के आशीर्वाद से ही पाया है।
——अशोक कुमार


