उर्दू संवादो के कारण देशभर में मशहूर हुई फरीदाबाद की श्रद्धा रामलीला

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फरीदाबाद। अशोक शर्मा

(ashoksharma@hellohind.in)

फरीदाबाद की श्रद्धा रामलीला का मंचन उर्दू संवादों के कारण देशभर में मशहूर है। देश बंटवारे के समय पाकिस्तान से आए लोग अपनी संस्कृति

प्रतीक रामलीला की उर्दू वाली स्क्रिप्ट भी साथ लेकर आए।

..मौत का तालिब हूं मैं, मेरी लबों पे जान है, दो घड़ी का यह मुसाफिर आपका मेहमान है। यह पीछे से फिकर करना मुझे बदला दिलाने की, कोई तजवीज कर पहले तू अपनी जां बचाने की। ऐ मेरे बहादुर भाई ये तुम्हारा महज ख्याल है, वरना तुम्हें बुजदिल कहने की भला किसकी मजाल है। रामलीला में सीता स्वयंवर के दृश्य में परशुराम-लक्ष्मण और राम-लक्ष्मण के बीच हिंदी-उर्दू मिश्रित भाषा में संवाद शहरवासियों को ही नहीं बल्कि शहर के बाहर भी पसंद किए गए हैं। देश बंटवारे के समय पाकिस्तान के शहरों से आए लोगों को इस भाषा में रामलीला के संवाद उन्हें अपने बचपन की याद दिलाते हैं। जिसके चलते दिल्ली मुंबई, कानपुर, कुरुक्षेत्र, अंबाला, मेरठ, मुरादाबाद, ग्वालियर, लखनऊ, भोपाल, जयपुर जैसे शहरो में बसे लोगों के बड़े बुजुर्गों ने रामलीला देखने की गुजारिश करते हैं। इस रामलीला के मौजूदा निर्देशक अनिल चावला के परगुरू स्वर्गीय टेकचंद और गुरू स्वर्गीय नंदलाल बतरा इस उर्दू संवाद आलेख को अपने साथ ले आए।

बंटवारे की त्रास्दी झेलने के बाद भी सांस्कृतिक विरासत नहीं छोड़ी

एनएच-एक में होने वाली विजय रामलीला के संरक्षक एवं संगीतज्ञ रामायण गायक स्वर्गीय विश्वबंधु शर्मा के पुत्र सोनू शर्मा बताते है कि देश बंटवारे के समय भारत के पश्चिम इलाके से आए लोग  हिंदू उर्दू और पंजाबी पढ़ते और अच्छी तरह समझते हैं। इसलिए रामलीलाओं के संवाद आलेख भी हिंदी और उर्दू में हैं। इनमें शेर-ओ-शायरी खूब हैं। विभाजन की त्रासदी में लाखों लोग इधर से उधर हुए। घर-बार छूट गए। लेकिन अपनी सांस्कृतिक विरासत नहीं छोड़ सके। उस संस्कृति की झलक रामलीलाओं के मंचन में दिखाई देती हैं।

श्रद्धा रामलीला के मुख्य निर्देशक अनिल चावला बताते हैं कि इस स्क्रिप्ट में …हो न अंधे इस कदर इस मोह के जंजाल में, इक दिन आना पड़ेगा काल के गाल में, इस रूखे ताबा पे होगी मुर्दानी छाई हुई, तेरी शान होगी वक्त की ठोकर से ठुकराई हुई…जैसे संवाद है। इस संवाद में ऐसे उर्दू शब्द नहीं हैं कि कोई समझ न सके। इसमे कायरपन, बुजदिली, शुमार, जुमले, जुल्म, हलक, पैगाम, कत्लेआम, आबरू, नुमाइश, मुतस्सर, जौहर, बेहूदा अल्फाज, अफसोस, तिलमिलाना, गुस्ताख, नाहक, दुहाई, गुनाहगार, लख्ते-जिगर, संग दिल, गुफ्तगू, तालिब, गैरमौजूदगी, आइंदा और लगाम जैसे शब्दों का संवाद में इस्तेमाल यहां आम है।

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