महर्षि मार्कण्डेय की तपस्थली अरावली पर्वत श्रंखलाओं का संरक्षण करेगा पुरातत्व विभाग
-हरियाणा पुरातत्व विभाग की टीम कर चुकी है अरावली का दौरा
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नई दिल्ली। अशोक शर्मा
अरावली पर्वत श्रंखलाओं में पुरानतकाल के कुछ साक्ष्य मिलने का दावा किया गया है। एक किदंवती के मुताबकि अरावली पर्वत श्रंखलाएं महर्षि मार्कण्डेय की तपस्थली रही है। इसके मददेनजर कुछ छात्र अरावली में अपना शोध कार्य को बढ़ावा देने रहे हैं। ऐसे में पुरातत्व विभाग अरावली पर्वत श्रंखलाओं का संरक्षण करेगा। हरियाणा पुरातत्व एवं संग्राहलय विभाग अरावली के करीब छह सौ हेक्टेयर भूमि पर पुरातत्व के मददेनजर सर्वे का कराएगा। हरियाणा सरकार की खनन संबंधी एक याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने सुनवाई के दौरान पुरातत्व विभाग को सर्वे का कार्य जल्द पूरा करने के दिशा-निर्देश दिए थे।
पुरातत्व एवं संग्राहलय विभाग अरावली में धौज, मांग, सिलावटी आदि इलाकों में सर्वे को प्राथमिकता पर पूरा करेगा। हालांकि विभाग की एक अधिसूचना के मुताबिक करीब पांच हजार हेक्टेयर क्षेत्र का संरक्षण करने की योजना विभाग की है। ताकि इस संरक्षित क्षेत्र में पुरातत्व संबंधी शोध कार्य को बढ़ावा दिया जा सके। विभाग के अधिकारियों का दावा है कि इस क्षेत्र में पुरातत्व संबंधी चीजें हैं। इसलिए सर्वे आवश्यक है। पुरातत्व शास्त्र के छात्र भी यहां अरावली के मांगर क्षेत्र में पाषाण काल के शैलचित्र मिलने की रिपोर्ट विभाग को सौंप चुके हैं। अरावली के फरीदाबाद के मांगर और आसपास के गांवों के इलाकों में शोध कार्य भी किया गया था। इस दौरान मानव जाति के कुछ ऐसे चिह्न मिले हैं, जो पाषाण युग के हो सकते हैं। मांगर और कोट गांव के निकट अरावली में पत्थर के घर व गुफाएं होने का भी दावा किया गया था, जिनमें पत्थरों पर मानव के हाथ-पैर के निशान है। ऐसे में अरावली का यह क्षेत्र रहस्यों से भरा हो सकता है। इसलिए इस क्षेत्र को संरक्षित करके शोध की आवश्यकता है।
हरियाणा पुरातत्व व संग्रहालय निदेशालय गांव मांगर, फतेहपुर, अनंगपुर, कोट, धौज, मोहबताबाद आदि गांवों के आसपास के क्षेत्र में पहले सर्वे करेगा। फिर संरक्षित करने का प्रस्ताव तैयार किया जाएगा। हरियाणा पुरातत्व व संग्रहालय निदेशालय के उपनिदेशक बनानी भट्टाचार्य का कहना है कि अरावली में 10 से 50 हजार साल पुरानी कुछ चीजें मिलने की संभावना है। इसके लिए पहले सर्वे की आवश्यकता है। जिस क्षेत्र में कुछ मिलेगा उसे संरक्षित करके शोध कार्यों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
नब्बे के दशक में भी किया गया था कुछ शोध कार्य
अरावली में बसे अनंगपुर गांव के आसपास के इलाके में भारतीय पुरातत्व से जुड़े कुछ शोधार्थियों ने वर्ष 1991 से 1993 तक शोध कार्य किया। इसमें पुरातन पाषाण काल के कुछ औजार, उपकरण और कुछ शैलचित्र मिले थे। लेकिन इस दौरान राज्य सरकार ने इसे वन आरक्षित क्षेत्र घोषित करके प्रतिबंध लगा दिया। कुछ शौधार्थियों ने बाद में प्रयास किया तब वर्ष 2002 में सर्वोच्च न्यायालय ने क्षेत्र में सभी प्रकार के गैरवानिकी कार्य या खनन पर प्रतिबंध लगा दिया, जिसे शोध कार्य नहीं हो सका।
दिल्ली एनसीआर के लिए जीवन रेखा है अरावली
अरावली बचाने के लिए पर्यावरणविद सुनील हरसाना कहना है कि अरावली पर्वत श्रंखलाएं दिल्ली-एनसीआर के लोगों के लिए जीवन रेखा है। इसलिए इसका संरक्षण बेहद आवश्यक है। बढ़ते वाहन के बोझ से दिल्ली एनसीआर प्रदूषण से ग्रस्त हो चुका है। साल-दर साल वायु की गुणवत्ता बेहद खराब हो रही है। अरावली यहां फेफडो के रूप में काम करती है। पश्चिम से आने वाली गर्म हवा को अरावली ठंडा कर देती है। अरावली दिल्ली-एनसीआर के लिए जीवनदायनी मानी जाती है।


